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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 42 


भोलेनाथ की पूजा के पश्चात देवयानी अपनी कुटिया में आ गई और कच अपनी कक्षा में चला गया । रह रहकर कच को देवयानी की आंखें दिखाई देने लगीं । "लाल कमलों" को कितनी अभिलाषा से देख रही थी देवयानी । फिर उसने कच की ओर आशा भरी दृष्टि से देखा जैसे वह कच से कह रही हो "मेरे लिए लाल कमल ला दो ना" । देवयानी के उन शब्दों से कच के मन में उथल-पुथल होने लगी । "उसे वे लाल कमल लाने चाहिए" एक मन कहता । फिर उसे नारद जी के कहे हुए वाक्यों का भी स्मरण हो आया । नारद जी ने कहा था कि "देवयानी तुम्हारा सुरक्षा कवच है । जब तक देवयानी तुमसे प्रसन्न है तब तक कोई भी तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर पाएगा । इसलिए देवयानी को सदैव प्रसन्न रखने का प्रयत्न करना" । उसे देवॠषि नारद के कहे एक एक शब्द आज भी अक्षरश: याद हैं । 

वह आंखें बंद करके कुछ क्षण विचार करता रहा । कच जानता था कि वह दैत्यों के मध्य एकाकी है । ये दैत्य उसका कुछ भी अनर्थ कर सकते हैं , इनका क्या विश्वास ? एक देवयानी ही है जो इन दैत्यों से उसकी रक्षा कर सकती है । उस देवयानी की कामना एक लाल कमल में अटकी हुई है । उसे देवयानी की कामना की पूर्ति करनी ही चाहिए क्योंकि वह उसकी एकमात्र रक्षक है यहां पर । वैसे भी उसने प्रथम बार उससे कुछ चाहा है । यद्यपि देवयानी ने अपने मुंह से कुछ नहीं कहा है किन्तु अपने मृगनयनों से याचना तो की है लाल कमल लाने की । अब इसके बाद भी कुछ कहे जाने की आवश्यकता है क्या ? एक गुरू पुत्री उससे आकांक्षा कर रही है कि वह जाकर उसके लिए "लाल कमल" के पुष्प लेकर आये तो वह भी एक शिष्य का कर्तव्य निभायेगा । उसने मन ही मन दृढ़संकल्प कर लिया । 

किन्तु पुजारी जी ने तो कहा था कि "लाल कमलों" को लाना असंभव है तो फिर वह उन्हें कैसे ला सकता है ? कच असमंजस में पड़ गया । निराशा और आशा में द्वंद्व होने लगा । "बस, इतनी सी सामर्थ्य है ? प्रयास करने से पूर्व ही पराजय स्वीकार कर लेना कायरता है कच । साध्य तक पहुंचेंगे अथवा नहीं इस पर विचार मत करो । समस्त ध्यान अपने परिश्रम पर केन्द्रित करो और अपनी पूर्ण क्षमता से प्रयास करोगे तो साध्य तक अवश्य पहुंच जाओगे" । आशा मुस्कुराती हुई कहने लगी । 

आशा की बात सुनकर निराशा सर्प की तरह फुंफकार उठी । "मंजिल तक पहुंचना इतना आसान नहीं है कच । सुना नहीं पुजारी क्या कह रहा था ? वह कह रहा था कि सागर में लगभग 5 किलोमीटर दूर एक द्वीप है । उस द्वीप में एक जलाशय है । उस जलाशय में खिलते हैं अद्भुत "लाल कमल" और उनकी रक्षा एक यक्ष करता है । उस यक्ष से बचकर ही उन लाल कमलों को तोड़ा जा सकता है । उसके पश्चात पुन: 5 किमी सागर फिर से पार करना होगा यहां तक आने के लिए । ये कार्य असंभव सा है और तुमसे यह नहीं होगा कच । व्यर्थ ही अपनी ऊर्जा नष्ट करने से कोई लाभ नहीं है" । कच के हृदय में समुद्र मंथन की तरह "आत्म मंथन"  चल रहा था । 

अंत में बलवती आशा के समक्ष क्षीणकाय निराशा ने समर्पण कर दिया । आशा बड़ी बहन की और निराशा छोटी बहन की तरह होती है । जिस तरह बड़ी बहन छोटी बहन को जैसे तैसे करके अपने नियंत्रण में कर ही लेती है उसी तरह आशा ने भी निराशा पर नियंत्रण स्थापित कर ही लिया । कच ने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वह देवयानी की अभिलाषा का सम्मान कर उसे पूर्ण करने का हरसंभव प्रयास करेगा । जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को करने का दृढ़संकल्प कर लेता है तो उसका आधा कार्य तो तभी हो जाता है । कच ने भी दृढ़संकल्प कर लिया था इसलिए अब उसके मन का द्वंद्व समाप्त हो चुका था और उसके चेहरे पर कांति छा गई थी । 

कक्षा से मुक्त होकर कच "लाल कमल" लाने के लिए चल दिया । चलते चलते वह सागर के किनारे आ गया । उसने चारों ओर दृष्टि घुमाई किन्तु उसे सघन जलराशि के अतिरिक्त अन्य कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं हुआ । समुद्र की ऊंची ऊंची लहरें लपलपाती हुई मृत्यु की सदृश लग रही थीं । उनकी भयावहता को देखकर एक बार पुन: कच का विश्वास डगमगा गया । "क्या वह आत्महत्या करने जा रहा है" ? उसके मन ने कहा । "गुरू पुत्री की अभिलाषा पूर्ण करने के लिए क्या उसे अपना जीवन दांव पर लगा देना चाहिए" ? उसके मन में छुपी बैठी निराशा एक बार पुन: फुंफकार उठी । किन्तु अगले ही क्षण उसे देवयानी का कृतज्ञ चेहरा दिखाई दिया जब उसने उसे लाल कमल भेंट किये । उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये असंभव कार्य मैं संभव कर सकूंगा । उसके मुख पर जो प्रसन्नता के भाव प्रकट हुए थे उन्हें देखने के लिए तो वह कई बार मृत्यु का वरण भी कर सकता है । ऐसा सोचकर कच अथाह सागर में कूद गया । 

वह तेज गति से आगे बढ़ रहा था । अपनी सारी शक्ति लगा देने से उसे शीघ्र ही थकान महसूस होने लगी । एकाएक उसे बचपन में गुरूजी से सुनी "कछुआ और खरगोश" की कथा का स्मरण हो गया । उस कथा को सुनाने के पश्चात गुरूजी ने कहा था कि लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक शीघ्रता नहीं करनी चाहिए । अधिक शीघ्रता करने से शीघ्र ही थकान आ जाती है और इससे बदन शिथिल हो जाता है । कच को ध्यान आया कि यदि अत्यधिक थकान से उसका बदन शिथिल हो गया तो वह इस सागर में ही डूब जाएगा । अत: उसे शीघ्रता की नहीं शनै: शनै: अनवरत प्रयास करने की आवश्यकता है । कच ने अपनी योजना बदल दी और उसने अपने गति कम कर दी । 

वह भगवान को ध्यान में रखकर अब धीरे धीरे तैरता रहा और अपने लक्ष्य की ओर बढता रहा । लगभग 1 घंटा तैरने के पश्चात उसे सामने वह द्वीप दिखाई देने लगा । उसके चेहरे पर विजयी मुस्कान आ गई । जब लक्ष्य सामने दिख जाये तो उसे प्राप्त करना और आसान हो जाता है । कच निरंतर उस द्वीप की ओर अग्रसर होता रहा और अंत में वह उस द्वीप के किनारे पहुंच ही गया । द्वीप पर पहुंच कर वह थकान से निढाल हो चुका था इसलिए वह वहीं पर लेट गया और शीघ्र ही निद्रा देवी ने उसे अपने अंक में भर लिया । 

वह स्वप्न की दुनिया में सैर करने लगा । उसे ऐसा लगा जैसे वह एक पृथक दुनिया में आ गया है । उसने वहां एक राजकुमारी को देखा जो सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति थी । उसने एक लाल गुलाब का पुष्प उसे भेंट किया । राजकुमारी उस लाल गुलाब को देखकर प्रसन्न हो गई और उसने कच का हाथ पकड़कर उसे अपने पास बैठा लिया । कच अपलक उस राजकुमारी को देखे जा रहा था और राजकुमारी भी उसे अपलक देखे जा रही थी । तब कच ने राजकुमारी का चेहरा अपने दोनों हाथों के मध्य थाम लिया और अपने अधर राजकुमारी के अधरों पर रख दिये । राजकुमारी के नेत्र स्वत: बंद हो गये । कच उन रसीले अधरों का रसपान करता रहा । राजकुमारी भी इसमें सहयोग करती रही । उसके बाद कच ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया । राजकुमारी ने भी अपनी बांहें उसके गले में डाल दी और दोनों एक दूसरे में खो गये । अचानक किसी हिंसक जीव की आवाज से कच की नींद खुल गई । कच ने सामने देखा कि एक भयानक व्याघ्र उसे देखकर गुर्रा रहा है । 

श्री हरि 
13.7.2023 

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6 Comments

Varsha_Upadhyay

15-Jul-2023 07:45 PM

बहुत खूब

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jul-2023 01:28 PM

🙏🙏🙏

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Alka jain

15-Jul-2023 02:45 PM

Nice one

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jul-2023 01:28 PM

🙏🙏🙏

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Gunjan Kamal

14-Jul-2023 09:05 AM

👌👏

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Hari Shanker Goyal "Hari"

14-Jul-2023 10:32 AM

🙏🙏

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